NEEHARIKANJALI
Poet
Sarvesh Tripathi


नाम- डॉ. सर्वेश त्रिपाठी
जन्मतिथि- 14-Oct-1980
जन्मस्थान- निघासन
सम्प्रति- Assistant Professor IM Lucknow
लेखन विधा- गीत, मुक्तक
प्रकाशित रचनायें- सभ्यताओं की प्रस्तावनाएँ : जनजातियाँ

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कविता संग्रह


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मुक्तक


पूर्ण सच था नही किंतु मानक कहा ।
झूठ या सच कहा पर अचानक कहा ।
मुझसे कहने का अवसर दिया ही नही ।
तुमने नयनों से सारा कथानक कहा ।

बेमन से आरती भी झूठी उतार कर ।
वह प्यार की निशानी अनूठी उतार कर ।
चेहरे का रंग जो था उतरना उतर गया ।
रोई थी उंगलियाँ भी अँगूठी उतार कर ।

अपनी चाहत मे कुछ भ्रम नही था ।
प्रभु का आशीष भी कम नही था ।
तुमने चाहा तो सर्वश्व देना ।
भाग्य में मेरे ही दम नही था ।

सारी दुनिया के एहसान सारे लिए ।
हम रुकेंगे तो केवल तुम्हारे लिए ।
तुमको कोई नही चाहता है वहाँ ।
बस चले आना केवल हमारे लिए ।

साथ में जीने मरने का वादा हुआ ।
जो न टूटे कभी वह इरादा हुआ ।
आज तक तुमने हमसे जो पूछा नहीं ।
डर उसी प्रश्न से सबसे ज्यादा हुआ ।

सोच अनुचित उचित तथ्य ही चुन लिया !
सब कथा व्यास का कथ्य ही चुन लिया !!
सब की आँखों में खटकूँ ये अच्छा नहीं !
इस लिये मैने नेपथ्य ही चुन लिया !!

प्रीति का हर समर्पण बहुत साफ हो ।
अर्चना का भी अर्पण बहुत साफ हो ।
देखना हो स्वयं को कभी जब हमें ।
ध्यान रखना कि दर्पण बहुत साफ हो ।

ये न समझो कि तुम ही विफल हो गये.
बात उनमें है कुछ जो सफल हो गये
धैर्य की ही परीक्षा तो है जिन्दगी
कुछ सफल हो गये कुछ विफल हो गये.

ऐसे ही बिन सहारे लिए आ गया ।
दे न पाया इशारे लिए आ गया ।
बन्धनों में बंधी जिंदगी छोड़कर ।
आ गया बस तुम्हारे लिए आ गया ।

घाव हर धीरे धीरे सिया जायेगा ।
अब तो केवल गरल ही पिया जायेगा ।।
हो चुके इतना अभ्यस्त दुख दर्द के ।
दर्द के बिन न हम से जिया जायेगा ।।

कह गए भाव कुछ भंगिमा कह गयी ।
जिन्दगी बेबसी खुद बखुद सह गयी ।
आना जाना शुरू फिर हुआ तो मगर ।
बात अब पहले जैसी नही रह गयी ।

चन्द खुशियों के खातिर बहुत गम मिले ।
खैर जो भी मिले वह बहुत कम मिले ।।
मैने जब जब तुम्हारी पढ़ी चिट्ठियाँ ।
शब्द उनमें तुम्हारे बहुत नम मिले ।।

तोड़कर मैं सभी सिलसिले आ गया ।
छोड़कर सारे शिकवे गिले आ गया ।।
टूट जाएं न जीवन के सिद्धांत प्रिय !
इसलिए आपसे बिन मिले आ गया ।।

जो किये उन ही वादों में खो जाएँ हम ।
अपने पावन इरादों में खो जाएँ हम ।
पूरी दुनिया मे क्या हो रहा छोड़कर ।
आओ कुछ अपनी यादों में खो जाएँ हम ।

वख्त रहते नही आप चेते कभी ।
अपने रिश्ते का एहसास देते कभी ।
चीख कर बोल पड़ती विरह वेदना ।
मेरी आँखों मे गर झाँक लेते कभी ।

जब कभी साथ साथ चलते थे ।
हम हवा का भी रुख बदलते थे ।
पाँव रुकते नहीं हैं अब घर में ।
पहले इतना कहाँ निकलते थे ।

उस विधाता की अनुपम बनें एक कृति ।
और सदभाव की हम बने आकृति ।
आओ मिलजुल के जीते रहें जिन्दगी ।
अपने जीवन की ऐसी बने संस्कृति ।।

डबडबायी हुईं प्यास खासी लिए ।
शांत गंभीर आँखें रुवासी लिए ।
हिज्र से पहले क्या क्या नही हो गया ।
आप लौटे थे कितनी उदासी लिए ।

झील के ठहरे पानी में रक्खा है क्या ।
अपनी इस जिन्दगानी में रक्खा है क्या ।
पिछले पन्नों को पलटो तो पछताओगे ।
मेरी गुमसुम कहानी में रक्खा है क्या ।

जिंदगी ऐसी जो बिन तुम्हारे जिए ।
फायदा क्या हुआ फिर हमारे जिए ।
आदतें जो हमारी छुड़ाते थे तुम ।
उम्र सारी उन्ही के सहारे जिए ।

ये है अध्यात्म विज्ञान समझो नही ।
लक्ष्य है इसको सन्धान समझो नही ।
गीत सारे समर्पित किये प्यार में ।
इनको उपहार सम्मान समझो नही ।

दर्द से तुम भी माना कि रीते नहीं ।
दिन इधर भी कभी सुख से बीते नही ।
किससे अपनी लड़ाई की बाते करें ।
तुम भी हारे नही हम भी जीते नही ।

व्यर्थ संबध हमसे निभेंगे नही ।
कोई प्रतिबंध हम सह सकेंगे नही ।
पद प्रतिष्ठा कहाँ से कहाँ ले गयी ।
ऐसे अनुबंध हमसे सधेंगे नही ।।

धर्म की साधना जागती तो मिले ।
राम जी जैसा कोई यती तो मिले ।
नारियाँ धर्म सीता सी सीखें मगर ।
कोई अनुसुइया जैसी सती तो मिले ।

पास मेरे रहा दर्द भी द्रव्य सा ।
रोज बढ़ता गया तो रहा नव्य सा ।
मुझको पग पग पे गुरु द्रोण मिलते रहे ।
मै भी शिक्षित हुआ किन्तु एकलव्य सा ।




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