Poet
Waseem Barelvi
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Back to List of Poets Back to List of Poems मैं चाहता भी यही था वो बेवफ़ा निकले
उसे समझने का कोई तो सिलसिला निकले किताब-ए-माज़ी के औराक़ उलट के देख ज़रा न जाने कौन-सा सफ़्हा मुड़ा हुआ निकले मैं तुझ से मिलता तो तफ़्सील में नहीं जाता मेरी तरफ़ से तेरे दिल में जाने क्या निकले जो देखने में बहुत ही क़रीब लगता है उसी के बारे में सोचो तो फ़ासला निकले तमाम शहर की आँखों में सुर्ख़ शो'ले हैं 'वसीम' घर से अब ऐसे में कोई क्या निकले |
***सहमति पत्र***
1. मैं साहित्यिक वेबसाइट www.niharikanjali.com को अपनी साहित्यिक रचनाएं जो कि मेरी स्वयं की मौलिक रचनाएं हैं, प्रकाशित करने की सहमति प्रदान करता / करती हूँ। इसके लिए उपरोक्त वेबसाइट से मैं भविष्य में कभी भी अपनी रचनाओं को प्रकाशित करने के लिए किसी भी प्रकार के भुगतान की मांग नहीं करूंगा / करूंगी।
2. विवाद की स्थिति में रचनाओं की मौलिकता सिद्ध करने में वेबसाइट www.niharikanjali.com की किसी प्रकार की कोई जिम्मेदारी नहीं होगी एवं रचनाओं की मौलिकता सिद्ध करने का प्रथम एवं अंतिम कर्तव्य मेरा स्वयं का ही होगा।
3. उपरोक्त वेबसाइट से संबंधित किसी भी प्रकार के विवाद का न्यायिक क्षेत्र कानपुर अथवा दिल्ली ही होगा।
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