Poet
Urmilesh Shankhdhar
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Back to List of Poets Back to List of Poems उसकी चूड़ी, उसकी बेंदी, उसकी चुनर से अलग
मैं सफर में भी न हो पाया कभी घर से अलग गो कि मेरी ‘पास-बुक’ से भी बड़े थे उनके ख्वाब फिर भी उसने पाँव फैलाये न चादर से अलग मुझसे वो अक्सर लड़ा करती है, मतलब साफ है वो न भीतर से अलग है, वो न बाहर से अलग पत्रिकायें उसके पढ़ने की मैं लाया था कई फिर भी उसने कुछ न देखा मेरे स्वेटर से अलग सोच में उसके भरी हैं मेरी लापरवाहियाँ यों वो सोने जा रही हैं मेरे बिस्तर से अलग उम्र ढलते ही बनेगा कौन मेरा आइना हो न पाया मैं कभी उससे इसी डर से अलग दोस्तों, हर प्रश्न का उत्तर तुम्हें मिल जायेगा सोचना कुछ देर घर को अपने दफ्तर से अलग |
***सहमति पत्र***
1. मैं साहित्यिक वेबसाइट www.niharikanjali.com को अपनी साहित्यिक रचनाएं जो कि मेरी स्वयं की मौलिक रचनाएं हैं, प्रकाशित करने की सहमति प्रदान करता / करती हूँ। इसके लिए उपरोक्त वेबसाइट से मैं भविष्य में कभी भी अपनी रचनाओं को प्रकाशित करने के लिए किसी भी प्रकार के भुगतान की मांग नहीं करूंगा / करूंगी।
2. विवाद की स्थिति में रचनाओं की मौलिकता सिद्ध करने में वेबसाइट www.niharikanjali.com की किसी प्रकार की कोई जिम्मेदारी नहीं होगी एवं रचनाओं की मौलिकता सिद्ध करने का प्रथम एवं अंतिम कर्तव्य मेरा स्वयं का ही होगा।
3. उपरोक्त वेबसाइट से संबंधित किसी भी प्रकार के विवाद का न्यायिक क्षेत्र कानपुर अथवा दिल्ली ही होगा।
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