Poet
Rahul Awasthi
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Back to List of Poets Back to List of Poems उठी जब-जब नज़र, देखा - ग़ज़ब का सीन, ये दुनिया
मगर मौक़ा पड़े करती है तेरह-तीन ये दुनिया बयानी ख़ुर्दबीनों की, ज़बानी दूरबीनों की - बड़ी संगीन ये दुनिया, बड़ी रंगीन ये दुनिया चटख रंगीन सेमल-फूल की उड़ती रुई दुनिया छुए भर से मुई दुनिया - छुई ये अनछुई दुनिया बहकते वक़्त की भट्ठी में ये पैठी हुई दुनिया बड़े, बारूद के इक ढेर पर बैठी हुई दुनिया उधर वो जल रहा अम्बर, इधर ये जल रही धरती मगर ये फूल अब भी दे रही है, फल रही धरती अभी भी चल रही धरती तो इसका धैर्य मत तोलो हमें भी कल तभी होगा अगर ये कल रही धरती धरा का धैर्य खो जाये तो बोलो क्या भला होगा प्रलय हर व्यक्ति बो जाये तो बोलो क्या भला होगा यही जो ताप पैंतालीस में हलकान कर देता अगर ये साठ हो जाये तो बोलो क्या भला होगा करोड़ों ग्रह मिटे, धरती अभी ख़ुद्दार बाक़ी है यहाँ पर आदमी ग़द्दार बन कर भार बाक़ी है धरा पर हिमप्रलय औ' जलप्रलय हो ही चुकीं लेकिन सुनो, ज्वालाप्रलय होना अभी इस बार बाक़ी है भड़कती रोज़ ग्लोबल वार्मिंग है वार्निंग इसकी नदी सूखी, चटकती भूमि - अल्टीमेट रिंग इसकी अभी मिसकॉल है ज्वालाप्रलय की, मिस न अब करना बड़ी भारी पड़ेगी कल हमें कॉलिंग-कटिंग इसकी धुरी से ये धरा हट जाय दीवानों, तो क्या होगा धरा से सूर्य बस सट जाय दीवानों, तो क्या होगा समन्दर बॉयलर जैसा दहकता जा रहा निशिदिन अगर ये बॉयलर फट जाय दीवानों, तो क्या होगा अगर ये बॉयलर मज़बूत रखना है तो फिर हमको सुरक्षित पञ्च प्राकृतभूत रखना है तो फिर हमको हरी चादर बहुत मज़बूत रखनी होगी जीवन भर अगर अक्षुण्ण जीवन-सूत रखना है तो फिर हमको हमें धारे सँवारें जो, उसे हम बाँट देते हैं हमें बाँटें सदा जीवन, उसे हम पाट देते हैं हमें जो घाव देते हैं उन्हें हम भाव देते हैं हमें जो छाँव देते हैं, उन्हें हम काट देते हैं हमें जो फूल देते हैं, उन्हें हम ख़ार देते हैं हमें जो हर ख़ुशी देते, उन्हें धिक्कार देते हैं यही इंसान होते हैं, यही इंसानियत है क्या हमें जो ज़िन्दगी देते, उन्हें हम मार देते हैं हमें आबाद करते जो, उन्हें बरबाद करते हैं न हम इस पर कभी कोई उचित संवाद करते हैं कि जिनके सार्थक अस्तित्व से अस्तित्व हैं अपना उन्हें महदूद कर हद में दिवस की, याद करते हैं न ऐसा हो प्रगति के हम नये आयाम दे डालें ज़रा आराम को जीवन-मरण का नाम दे डालें प्रदूषित वायु-जल - ये सब हमें नाकाम कर देंगे परस्पर हम स्वयं की मौत को अञ्जाम दे डालें न ऐसा हो कहीं इक दिन सकल संसार जल जाये समय से पूर्व सबकी ज़िन्दगी की धूप ढल जाये हमें जब चेतना आये, सुमति जागे हमारे, तब समझने का सँभलने का सही अवसर निकल जाये न जब कुछ भी मिलेगा शुद्ध, हम ये मन बना लेंगे न खाने योग्य जो होगा उसे ले स्वाद, खा लेंगे मयस्सर कुछ न जब होगा हमें, हम लोग तब अक्सर ज़रूरत के लिये इक दूसरे को चीर डालेंगे ख़ुशी की चाह में ख़ुदगर्ज़ियों का जाप कर बैठें असल में पुण्य के बदले हज़ारों पाप कर बैठें हथेली पर लिये घूमें बदलते दौर में दुनिया अँगुलियों की शरारत पर अँगूठाछाप कर बैठें समूचा आचरण चारित्र्य अपना भ्रष्ट कर डाला गगन को कष्ट कर डाला, ज़मीं को कष्ट कर डाला अगर परमार्थ करता, सृष्टि कर भगवान् बन जाता मगर इंसान के इक स्वार्थ ने सब नष्ट कर डाला अहम करना न ख़ुद पर, दीन-दुखियों पर रहम खाना बड़ी राहत रहेगी दोस्त, ग़म खाना व कम खाना यही इंसान को क़ुदरत हमेशा सीख देती है बुराई हो भले कितनी, भलाई की क़सम खाना भला ये तो नहीं है जब ज़रूरत हो, तभी सोचें भले मानुष, तनिक अपने अलावा भी कभी सोचें इधर जो कर रहे हैं वो भला है या बुरा - इस पर अगर कुछ सोचना है तो अभी सोचें, अभी सोचें हमें है क्या भला खोटा, हमें है क्या खरा, सोचें यहाँ पर क्या भला अपरा, यहाँ पर क्या परा, सोचें अगर सोचा न तो क्या-क्या न होगा और क्या होगा ज़रा सोचें, ज़रा सोचें, ज़रा सोचें, ज़रा सोचें जो तुम उसको सुधारोगे तो वो तुमको सुधारेगी जो तुम उसको निखारोगे तो वो तुमको निखारेगी जो तुम उसको सँवारोगे तो वो तुमको सँवारेगी जो तुम क़ुदरत को मारोगे तो क़ुदरत तुमको मारेगी स्वयं पर्यावरण अपना सुरभि-संयुक्त कर देंगे सुधारों के प्रयासों को समर्पणयुक्त कर देंगे हमें मिलकर शपथ यह एक स्वर से आज लेनी है कि दुनिया को यथासम्भव प्रदूषणमुक्त कर देंगे |
***सहमति पत्र***
1. मैं साहित्यिक वेबसाइट www.niharikanjali.com को अपनी साहित्यिक रचनाएं जो कि मेरी स्वयं की मौलिक रचनाएं हैं, प्रकाशित करने की सहमति प्रदान करता / करती हूँ। इसके लिए उपरोक्त वेबसाइट से मैं भविष्य में कभी भी अपनी रचनाओं को प्रकाशित करने के लिए किसी भी प्रकार के भुगतान की मांग नहीं करूंगा / करूंगी।
2. विवाद की स्थिति में रचनाओं की मौलिकता सिद्ध करने में वेबसाइट www.niharikanjali.com की किसी प्रकार की कोई जिम्मेदारी नहीं होगी एवं रचनाओं की मौलिकता सिद्ध करने का प्रथम एवं अंतिम कर्तव्य मेरा स्वयं का ही होगा।
3. उपरोक्त वेबसाइट से संबंधित किसी भी प्रकार के विवाद का न्यायिक क्षेत्र कानपुर अथवा दिल्ली ही होगा।
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