Poet
Rahul Awasthi
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Back to List of Poets Back to List of Poems लाज़िम है कि तुम भी देखोगे - भाग एक
इसलिये दिवस हैं, उत्सव हैं, सन्ध्या, आरती, प्रभाती हैं दुनिया भर में सारी सुबहें रातों से लड़कर आती हैं फिर सुबह हुई है तो आओ सब पर किरणों का छत्र धरें रातों के आने तक अरुणिम स्वर्णिम किरणें एकत्र करें कुछ किरणों के, कुछ कुहरे के अब पेंचोख़म भी देखेंगे लाज़िम है कि तुम भी देखोगे, लाज़िम है कि हम भी देखेंगे उदितेन्दु उधर उद्विग्न, इधर उन्मन मार्तण्ड उदन्त - सभी बदचलन हवाओं के कब्ज़े में हैं हेमन्त-वसन्त सभी बरसातें आग लगाये हैं शिशिरार्त शरद के पानी में अन्धड़-आँधी सन्नद्ध सभी पतझारों की अगवानी में कुछ वे मौसम भी देखे हैं, कुछ ये मौसम भी देखेंगे लाज़िम है कि तुम भी देखोगे, लाज़िम है कि हम भी देखेंगे मौसम-माहौल विषम लेकिन हम दिल पर हौल नहीं लेते जिसको पूरा न करें ऐसा कोई भी कौल नहीं लेते हर ओर कुहा है स्वार्थों का पर परमार्थों तक जाना है अन्तिम उद्देश्य शिवोमय है बाक़ी हर बात बहाना है जो कुछ होता है, होने दो, ज़्यादा हो या कम, देखेंगे लाज़िम है कि तुम भी देखोगे, लाज़िम है कि हम भी देखेंगे रंगिणियाँ तंग पतंग हुई कुछ अम्बर बीच कुलाँच रहीं लंकिनियाँ लंक-कलंक लिये अकलंक-कथाएँ बाँच रहीं है दिग्विजयों का शुभ मुहूर्त, झुँझलाते झींगुर-दादुर हैं ललमुँही कलमुँही छायाएँ सूरज ग्रसने को आतुर हैं छू-छिया-छई, काला जादू, अगड़म-बगड़म भी देखेंगे लाज़िम है कि तुम भी देखोगे, लाज़िम है कि हम भी देखेंगे दानवता विस्थापित होगी मानवता संस्थापित होगी अगुणों-सगुणों से ऊपर उठकर गुणवत्ता ज्ञापित होगी कृण्वन्तो विश्वमार्यम की गति सुगति प्रगति संगति होगी जब विश्वगुरुर्भव के संकल्पों की सार्थक परिणति होगी हर परचम से ऊपर उठता अपना परचम भी देखेंगे लाज़िम है कि तुम भी देखोगे, लाज़िम है कि हम भी देखेंगे जो सृष्य स्वयं, जो स्रष्ट स्वयं, जो सृष्टि स्वयं, जो स्रष्टा भी जो दृश्य स्वयं, जो द्रष्ट, जो दृष्टि स्वयं, जो द्रष्टा भी हम आत्मा उस परमात्मा की, उस सूरज की हैं रश्मि, अहा इसलिये अहं ब्रह्मास्मि, अहं ब्रह्मास्मि, अहं ब्रह्मास्मि कहा ब्रह्मास्मिन का जगवाले जग पर राजधरम भी देखेंगे लाज़िम है कि तुम भी देखोगे, लाज़िम है कि हम भी देखेंगे अवकाशरहित आकाश तले शम्पाओं का नर्तन होगा रोके से रुक न सकेगा कुछ ऐसा ही परिवर्तन होगा फ़ीक़ा-फ़ीक़ा करने वालों जब तीखा-तीखा आयेगा ऐसा परिवर्तन होगा जो भूकम्प सरीखा आयेगा हर ज़ुल्म-सितम का उपजाया कट्टी-कट्टम भी देखेंगे लाज़िम है कि तुम भी देखोगे, लाज़िम है कि हम भी देखेंगे मत की पेटी पर असली मतवाले को बैठा देखेंगे विक्रमादित्य की गद्दी पर ग्वाले को बैठा देखेंगे तालों-झीलों में निर्मल नाव-शिकारे तिरते पायेंगे अपनी धरती पर अपनों को निर्भय हो फिरता पायेंगे ऊधम करने वाले अबकी उद्यम का दम भी देखेंगे लाज़िम है कि तुम भी देखोगे, लाज़िम है कि हम भी देखेंगे जब बिछी बिसात सियासत की तब कुछ होकर तो रहना है जो होना है, अब होना है, बेकार अधिक कुछ कहना है जो फ़र्ज़ न जानें फ़र्ज़ी फ़र्ज़ी प्यादों से पिट जायेंगे जो चले मिटाने दुनिया को वे दुनिया से मिट जायेंगे तख़्तों-ताजों की टूटन का वैश्विक संगम भी देखेंगे लाज़िम है कि तुम भी देखोगे, लाज़िम है कि हम भी देखेंगे जो मिली दुआएँ हैं हमको, दुर्भेद्य कवच हो जायेंगी विधना की पोथी के पन्ने की बातें सच हो जायेंगी आहों पर और कराहों पर अत्याचारी का क्षय होगा आदिमता की चट्टानों पर संस्कृति का अन्त्योदय होगा जिनको अक्षम देखा उनका होना सक्षम भी देखेंगे लाज़िम है कि तुम भी देखोगे, लाज़िम है कि हम भी देखेंगे विस्थापित संस्थापित होंगे, अज्ञापित संज्ञापित होंगे जो सहमे-सिकुड़े कर डाले वे जगती में व्यापित होंगे जिनकी भूखें-प्यासें लूटीं, उनको रोटी-पानी होना जो दिल से हिन्दुस्तानी हैं, उनका हिन्दुस्तानी होना उत्तर-दक्कन भी देखेंगे, पूरब-पच्छम भी देखेंगे लाज़िम है कि तुम भी देखोगे, लाज़िम है कि हम भी देखेंगे |
***सहमति पत्र***
1. मैं साहित्यिक वेबसाइट www.niharikanjali.com को अपनी साहित्यिक रचनाएं जो कि मेरी स्वयं की मौलिक रचनाएं हैं, प्रकाशित करने की सहमति प्रदान करता / करती हूँ। इसके लिए उपरोक्त वेबसाइट से मैं भविष्य में कभी भी अपनी रचनाओं को प्रकाशित करने के लिए किसी भी प्रकार के भुगतान की मांग नहीं करूंगा / करूंगी।
2. विवाद की स्थिति में रचनाओं की मौलिकता सिद्ध करने में वेबसाइट www.niharikanjali.com की किसी प्रकार की कोई जिम्मेदारी नहीं होगी एवं रचनाओं की मौलिकता सिद्ध करने का प्रथम एवं अंतिम कर्तव्य मेरा स्वयं का ही होगा।
3. उपरोक्त वेबसाइट से संबंधित किसी भी प्रकार के विवाद का न्यायिक क्षेत्र कानपुर अथवा दिल्ली ही होगा।
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