Gopal Das Neeraj
नाम-
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डॉ. गोपालदास ‘नीरज’
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जन्मतिथि-
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04-Jan-1925
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निधन-
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19-Jul-2018
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जन्मस्थान-
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पुरावली, इटावा (उ.प्र.), भारत
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शिक्षा-
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हिन्दी विषय में परा-स्नातक एवं डी.लिट् (मानद)
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सम्प्रति-
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विभिन्न सरकारी-गैर सरकारी संस्थानों में टाइपिस्ट और क्लर्क के पदों पर कार्य किया और बाद में अलीगढ़ के डी. एस. कॉलेज में हिन्दी-विभाग में कई वर्षों तक अध्यापन-कार्य किया
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लेखन विधा-
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गीत, ग़ज़ल, कविता, मुक्तक, दोहे
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प्रकाशित रचनायें-
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दर्द दिया है, प्राण गीत, आसावरी, गीत जो गाए नहीं, बादर बरस गयो, दो गीत, नदी किनारे, नीरज की गीतीकाएँ, नीरज की पाती, लहर पुकारे, मुक्तकी, गीत-अगीत, विभावरी, संघर्ष, अंतरध्वनी, बादलों से सलाम लेता हूँ, कुछ दोहे नीरज के
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विशेष-
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नीरज जी से हिन्दी संसार अच्छी तरह परिचित है किन्तु फिर भी उनका काव्यात्मक व्यक्तित्व आज सबसे अधिक विवादास्पद है. जन समाज की दृष्टि में वह मानव प्रेम के अन्यतम गायक हैं. भदन्त आनन्द कौसल्यानन के शब्दों में उनमें हिन्दी का अश्वघोष बनने की क्षमता है. दिनकर के अनुसार वे हिन्दी की वीणा हैं. अन्य भाषा-भाषियों के विचार में वे सन्त-कवि हैं और कुछ आलोचक उन्हें निराश-मृत्युवादी मानते हैं. वर्तमान समय में सर्वाधिक लोकप्रिय और लाड़ले कवि हैं जिन्होंने अपनी मर्मस्पर्शी काव्यानुभूति तथा सरल भाषा द्वारा हिन्दी कविता को एक नया मोड़ दिया है और बच्चन जी के बाद नयी पीढी को सर्वाधिक प्रभावित किया है.
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जीवन परिचय-
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गोपालदास सक्सेना 'नीरज' का जन्म 4 जनवरी 1925 को ब्रिटिश भारत के संयुक्त प्रान्त आगरा व अवध, जिसे अब उत्तर प्रदेश के नाम से जाना जाता है, में इटावा जिले के ब्लॉक महेवा के निकट पुरावली गाँव में बाबू ब्रजकिशोर सक्सेना के यहाँ हुआ था. मात्र 6 वर्ष की आयु में पिता गुजर गये. 1942 में एटा से हाई स्कूल परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की. शुरुआत में इटावा की कचहरी में कुछ समय टाइपिस्ट का काम किया उसके बाद सिनेमाघर की एक दुकान पर नौकरी की. लम्बी बेकारी के बाद दिल्ली जाकर सफाई विभाग में टाइपिस्ट की नौकरी की. वहाँ से नौकरी छूट जाने पर कानपुर के डी. ए. वी. कॉलेज में क्लर्की की. फिर बाल्कट ब्रदर्स नाम की एक प्राइवेट कम्पनी में पाँच वर्ष तक टाइपिस्ट का काम किया. नौकरी करने के साथ प्राइवेट परीक्षाएँ देकर 1949 में इण्टरमीडिएट, 1951 में बी. ए. और 1953 में प्रथम श्रेणी में हिन्दी साहित्य से एम. ए. किया.
मेरठ कॉलेज, मेरठ में हिन्दी प्रवक्ता के पद पर कुछ समय तक अध्यापन कार्य भी किया. उसके बाद वे अलीगढ़ के धर्म समाज कॉलेज में हिन्दी विभाग के प्राध्यापक नियुक्त हो गये और मैरिस रोड जनकपुरी अलीगढ़ में स्थायी आवास बनाकर रहने लगे.
कवि सम्मेलनों में अपार लोकप्रियता के चलते नीरज को बम्बई के फिल्म जगत ने गीतकार के रूप में 'नई उमर की नई फसल' के गीत लिखने का निमन्त्रण दिया जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया. पहली ही फ़िल्म में उनके लिखे कुछ गीत जैसे 'कारवाँ गुज़र गया', 'गुबार देखते रहे' और 'देखती ही रहो आज दर्पण न तुम', 'प्यार का यह मुहूरत निकल जायेगा' बेहद लोकप्रिय हुए जिसका परिणाम यह हुआ कि वे बम्बई में रहकर फ़िल्मों के लिये गीत लिखने लगे. फिल्मों में गीत लेखन का सिलसिला मेरा नाम जोकर, शर्मीली और प्रेम पुजारी जैसी अनेक चर्चित फिल्मों में कई वर्षों तक जारी रहा.
किन्तु बम्बई की ज़िन्दगी से भी उनका मन बहुत जल्द उचट गया और वे फिल्म नगरी को अलविदा कहकर फिर अलीगढ़ वापस लौट आये.
पद्म भूषण से सम्मानित कवि, गीतकार गोपालदास 'नीरज' ने दिल्ली के एम्स में 19 जुलाई 2018 की शाम लगभग 8 बजे अन्तिम सांस ली.
अपने बारे में उनका यह शेर आज भी मुशायरों में फरमाइश के साथ सुना जाता है:
इतने बदनाम हुए हम तो इस ज़माने में, लगेंगी आपको सदियाँ हमें भुलाने में।
न पीने का सलीका न पिलाने का शऊर, ऐसे भी लोग चले आये हैं मयखाने में॥
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